नवप्रभात
चिंतक - पूज्य उपाध्याय श्री मणिप्रभसागर जी म.सा.
एक संत के पास एक व्यक्ति पहुँचा। वह एकान्त में कुछ बातें करना चाहता था। उसने कहा- महात्मन्! मैं आपको कुछ गोपनीय बात बताना चाहता हूँ। एक व्यक्ति जो आपके सामने बहुत मीठी बातें करता है, पर वह अन्य लोगोें के सामने आपके बारे में गलत बात करता है। मैं आपको विस्तार से सारी बातें बताना चाहता हूँ।
संत ने कहा- रूको! तुम मुझे जो बातें बताना चाहते हो, पहले तुम उन्हें तीन छलनियों से छानो, फिर मुझे सुनाओ।
पहली छलनी का नाम है- सच्चाई! जो बात तुम बताना चाहते हो, वह सही है। क्या तुम आश्वस्त हो उसकी सच्चाई के प्रति! तुमने स्वयं सुनी है, या सुनी सुनाई बात बता रहे हो। उसने कहा- आपका कहना सही है, मैं सुनी सुनाई सुना रहा हूँ।
सच्चाई की छलनी से तुम्हारी बात छन नहीं सकती। इसलिये तुम्हारी बात व्यर्थ है, संत ने कहा।
लेकिन मैं शेष दोनों छलनियों के बारे में जानना चाहता हूँ।
दूसरी छलनी का नाम है- अच्छाई! जो बात तुम बताना चाहते हो, वह अच्छी है या बुरी! यदि बुरी है तो मेरे किसी काम की नहीं। अच्छी है तो सुनने के लिये तैयार हूँ।
वह बोला- अच्छी तो नहीं है। क्योंकि निंदा और छल की बात है।
अब तीसरी छलनी के बारे में सुनो। तीसरी छलनी का नाम है- उपयोगिता!
तुम जो बात मुझे बताने जा रहे है, वह मेरे लिये उपयोगी है या नहीं। व्यर्थ बात सुनने का अर्थ है, अपने कीमती समय और मूल्यवान् बुद्धि को नष्ट करना।
जो बात मेरे भविष्य के लिये उपयोगी बने। जो मुझे ऊँचाईयों की ओर ले जाये, मैं वही सुनना चाहूँगा।
संत की बात सुन कर वह व्यक्ति सम्हल गया। उसने क्षमायाचना की और तीन छलनियों के प्रयोग का संकल्प लेकर विदा हो गया।
ये तीन छलनियाँ हमारे जीवन को मूल्यवान् बनाती है। हमारा मन मस्तिष्क कोई कूडाघर तो है नहीं कि उसमें सब कुछ बिना सोचे समझे डाल दिया जाय। किसी भी बात को मस्तिष्क तक पहुँचाने से पहले उसे छान लेना बहुत जरूरी है। संकल्प करें कि हम हर बात, घटना और वातावरण को इन तीन छलनियों से छान कर ही ग्रहण करेंगे।
Navprabhat by Maniprabh
जब मन एक नए पुष्प की भाँती खिला हो, तो रात के अँधेरे में भी नवप्रभात का आगमन होता है। जब मैं एकांत का अनुभव करता हूँ तो भावों के प्रवाह की शब्दों से प्रस्तुति हो जाती हैं... --उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा.
बुधवार, 19 अगस्त 2015
NAVPRABHAT एक संत के पास एक व्यक्ति पहुँचा। वह एकान्त में कुछ बातें करना चाहता था। उसने कहा- महात्मन्! मैं आपको कुछ गोपनीय बात बताना चाहता हूँ।
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