शनिवार, 4 अक्तूबर 2014

नवप्रभात- परमात्म-प्रेम --उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म.

कदम मंदिर की ओर बढ गये हैं। परमात्मा की भक्ति कर रहा हूँ। अकेला हूँ। स्तवन गा रहा हूँ। धीमी आवाज में गा रहा हूँ। मैं ही गाने वाला हूँ... मैं ही सुनने वाला हूँ! पर आज हृदय गा रहा है। आज ही तो सही रूप से जाना है कि मेरे परमात्मा कैसे है
सुनता तो हमेशा था। पर समझ पहली बार आया। भक्ति भी बहुत की थी, पर आज का अनुभव अलग था। हमेशा मंदिर आता था, पर कुल परम्परा के कारण! कुछ मांगने...! अपने संसार को को सुखी बनाने की प्रार्थना लिये...!
पर आज भावों की नई दुनिया में मैंने प्रवेश किया था। आज भक्ति का रंग अनूठा था। लगता था कि मैं ही बदल गया हूँ।