शुक्रवार, 27 जुलाई 2012

27. नवप्रभात --उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म.सा.

27.  नवप्रभात --उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म.सा.
हिसाब किताब के दिन आ रहे हैं। यह समय लेखा जोखा करने का है। कितना कमाया.... कितना गँवाया....! कमाया तो क्या कमाया! और गँवाया तो क्या गँवाया!
कमाने और गँवाने में मूल्यवान यदि वह है जो कमाया है, तो निश्चित ही हमने कुछ पाया है।
और जो कमाया है, उसकी अपेक्षा जो गँवाया है, वह ज्यादा मूल्यवान है, तो निश्चित ही हम हार गये हैं।
गत वर्ष की दीपावली के बाद आज इस दीपावली तक हमने एक साल जीया है। मैं एक साल बूढा हो गया हूँ। मेरी उम्र में एक साल का इज़ाफा हुआ है। आज मुझे इस साल भर की अपनी मेहनत का परिणाम सोचना है।
साल भर में मैंने क्या किया? आज का दिन आगे की ओर मुँह करके आगे बढने का नहीं है।
आज का दिन तो पीछे मुड कर अतीत में छलांग लगाने का है।
अच्छी तरह अपने अतीत को टटोलना है। लेकिन अतीत को केवल देखना है। उसे पकड कर बैठ नहीं जाना है।
उसे देखते रहने से क्या होगा? कितना ही अच्छा अतीत हो, उसमें जीया तो नहीं जा सकता। क्योंकि जीना तो वर्तमान में ही होता है।
अच्छे अतीत को निहार कर वर्तमान में रोना नहीं है। आ सकता है रोना क्योंकि वर्तमान उतना अच्छा नहीं ह
तो बुरे अतीत को देख कर वर्तमान में अहंकार भी नहीं करना है। आ सकता है अभिमान अपने उपर कि मैंने कितना अच्छा पुरूषार्थ किया कि अतीत इतना खराब होने पर भी मैंने अपना वर्तमान कितना अच्छा बना दिया!
सीख लेनी है अतीत से, लक्ष्य बनाना है भविष्य का और जीना है वर्तमान में!
दीपपंक्तियों के प्रकाश में यह तय करना है कि मेरा साल कैसे बीता!
यह तो तय है कि यह सोच मेरे अतीत को बदल नहीं सकती। जो बीत गया, वह बीत गया। उस हुए को अनहुआ नहीं किया जा सकता।
पर उस अतीत की क्रिया और उसके वर्तमान परिणाम को देखकर मैं अपने भविष्य को तो बदल ही सकता हूँ।
अपने भविष्य की रूपरेखा बनाकर अपना वर्तमान जीवन जीना, यही तो दीपावली की सीख है।
आज अपना हिसाब करना है। मेरा स्वभाव कैसा रहा! और जानना है कि मैं नफे में रहा या घाटे में रहा।
खोया एक साल और पाया क्या? अपने से ही यह प्रश्न करना है! अपने से ही इसका उत्तर पाना है। और उस आधार पर आने वाले साल के लिये संकल्पबद्ध हो जाना है।