शुक्रवार, 20 जुलाई 2012

7 नवप्रभात --उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म.सा.


जिंदगी की राह में हमारे विचार बहुत बडी भूमिका निभाते हैं। विचारों की दिशा यदि सही हो तो जिंदगी सुखद बन जाती है और यदि विचारों में विकृति का बोलबाला हो तो दु: और अशांति का परिणाम प्राप्त होता है।
घटना यदि हमारे द्वारा हो तो हमारे विचार अलग होते हैं। और वैसी ही घटना किसी और के द्वारा हो तो हमारे विचार दूसरे होते हैं। यह विचारों की विकृति है।
हमारे द्वारा कोई अच्छा कार्य होता है तो हमारे मन में आता है कि हर आदमी इस बात की प्रशंसा करे! बार बार किसी को सुनाने पर भी ऐसा महसूस होता है जैसे किसी को सुनाया ही नहीं है। पर किसी और के किसी अच्छे कार्य को एक बार भी सुनना हमें अच्छा नहीं लगता।
किसी और के द्वारा गलती होने पर लाल आँख करके गालियों की बरसात करने वाला आदमी अपनी वैसी ही गलती होने पर उसे गलती के रूप में स्वीकार भी नहीं कर पाता।
हमारे विचारों की तराजू के पलडों में अन्तर है। विचारों में तुलनात्मक दृष्टिकोण नहीं है।
हम जो दूसरों के साथ करते हैं उसमें और हम जो दूसरों से चाहते हैं, इसमें बडा अन्तर है।
हम दूसरों के साथ लडाई करते हैं, पर अपने साथ कोई लडाई करें, यह पसन्द नहीं करते।
हम दूसरों की निंदा करते हैं, पर कोई और मेरे बारे में उन्नीस बीस बात करें, यह पसन्द नहीं करते।
हम दूसरों से अपने छोटे से अच्छे कार्य की भी प्रशंसा सुनना चाहते हैं, पर दूसरों के बडे से बडे अच्छे कार्य की भी प्रशंसा करने में कंजूसी करते हैं।
यह जिंदगी का मुखौटापन है।
करने और चाहने का अन्तर मिटते ही जिंदगी का सारा व्यवहार बदल जाता है।
और यही अन्तर हमारी जिंदगी को दिशा देता है।
अपनी जिंदगी को संवारना है तो विचारों को सही दिशा देनी होगी।